आदित्य-एल1 ने सुलझाई 2024 के शक्तिशाली सौर तूफान की पहेली
भारत के पहले सौर वेधशाला मिशन आदित्य-एल1 ने मई 2024 में पृथ्वी से टकराए दो दशकों के सबसे शक्तिशाली सौर तूफान को लेकर वैज्ञानिकों की बड़ी उलझन दूर करने में अहम भूमिका निभाई। इसरो ने मंगलवार को बताया कि अदित्य-एल1 ने नासा के ‘विंड’ समेत छह अमेरिकी उपग्रहों के साथ मिलकर इस दुर्लभ घटना का अध्ययन कई अंतरिक्ष दृष्टिकोणों से संभव बनाया।
इसरो के अनुसार, ‘गैन्नस स्टॉर्म’ नाम दिए गए इस सौर तूफान की वजह सूर्य पर हुई कई विशाल कोरोनल मास इजेक्शन (सीएमई) थीं, जो गर्म गैस और चुंबकीय ऊर्जा के विशाल गुच्छे होते हैं। पृथ्वी से टकराने पर ये हमारी चुंबकीय ढाल को हिला देते हैं और सैटेलाइट, संचार प्रणाली, जीपीएस और बिजली ग्रिड तक को प्रभावित कर सकते हैं। भारतीय वैज्ञानिकों की टीम ने एस्ट्रोफिजिकल जर्नल लेटर्स में प्रकाशित शोध में बताया कि इस तूफान का व्यवहार असामान्य क्यों था।
इसरो ने कहा कि आमतौर पर सीएमई के भीतर एक चुंबकीय कॉर्ड होती है, लेकिन इस बार दो सीएमई अंतरिक्ष में आपस में टकरा गए। टक्कर से उनके अंदर मौजूद चुंबकीय क्षेत्र की रेखाएं टूटकर नई संरचना में जुड़ गईं, जिसे चुंबकीय पुनर्संयोजन कहा जाता है। इस अचानक हुए बदलाव से तूफान का असर उम्मीद से कहीं अधिक शक्तिशाली हो गया। उपग्रहों ने कणों की ऊर्जा में तेज वृद्धि दर्ज की, जिसने इस घटना की पुष्टि की।
वैज्ञानिक पहली बार ऐसे तूफान की संरचना को समझ पाए
इसरो ने बताया कि अदित्य-एल1 के सटीक चुंबकीय क्षेत्र मापन के कारण वैज्ञानिक पहली बार ऐसे तूफान की संरचना को कई अंतरिक्ष बिंदुओं से एकसाथ समझ पाए। शोध में पाया गया कि जहां सीएमई के चुंबकीय क्षेत्र टूटकर फिर जुड़ रहे थे, वह क्षेत्र लगभग 13 लाख किलोमीटर चौड़ा था, जो पृथ्वी के आकार का करीब 100 गुना है। इसरो ने कहा कि यह खोज सौर तूफानों के विकास को समझने और भविष्य में उनके प्रभाव का बेहतर अनुमान लगाने में अत्यंत महत्वपूर्ण है। बता दें कि सितंबर 2023 में लॉन्च हुआ अदित्य-एल1 भारत की अंतरिक्ष विज्ञान क्षमताओं में महत्वपूर्ण छलांग साबित हुआ है।


